Search This Blog

Monday, December 05, 2011

बुजुर्ग हमारी धरोहर

आज अधिकांश परिवारों में बुजुर्गों को भगवान तो क्या, इंसान का दर्जा भी नही दिया जा रहा है। किसी जमाने में जिनकी आज्ञा के बगैर घर का कोई कार्य और निर्णय नही होता था। 

   
      मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः - इस पंक्ति को बोलते हुए हमारा शीष श्रद्धा से झुक जाता है और सीना गर्व से तन जाता है । यह पंक्ति सच भी है जिस प्रकार ईश्वर अदृश्य रहकर हमारे माता पिता की भूमिका निभाता है उसी प्रकार माता पिता हमारे दृश्य, साक्षात ईश्वर है। इसीलिए तो भगवान गणेश ने ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने की बजाय अपने माता पिता शिव- पार्वती की परिक्रमा करके प्रथम पूज्य होने का अधिकार हांसिल कर लिया था, किन्तु आज के इस भौतिक वाद (कलयुग) में बढ़ते एकल परिवार के सिद्धान्त तथा आने वाली पीढ़ी की सोच में परिवर्तन के चलते ऐसा देखने को नही मिल रहा है। कुछ सुसंस्कारित परिवारों को छोड़ दें तो आज अधिकांश परिवारों में बुजुर्गों को भगवान तो क्या, इंसान का दर्जा भी नही दिया जा रहा है। किसी जमाने में जिनकी आज्ञा के बगैर घर का कोई कार्य और निर्णय नही होता था। जो परिवार में सर्वोपरि थे। और परिवार की शान समझे जाते थे आज उपेक्षित, बेसहारा और दयनीय जीवन जीने को मजबूर नजर आ रहे है यहां तक कि तथा कथित पढ़े लिखे लोग जो अपने आप को आधुनिक मानते है , अपने आपको परिवार की सीमाओं में बंधा हुआ स्वीकार नही करते हैं और सीमाऐं तोड़ने के कारण पशुवत व्यवहार करना सीख गये हैं वे अपने माता पिता व अन्य बुजुर्गों को ’’रूढ़ीवादी’’, ’’सनके हुये’’ तथा ’’पागल हो गये ये तो’’ तक का सम्बोधन देने लगे है।
     क्या आप नही जानते मां बाप ने आपके लिए क्या-क्या किया है या जानते हुये भी अनजान बनना चाहते हैं ? मैं आपकी याददाष्त इस लेख के माध्यम से लौटाने की कोशिश कर रहा हॅंू।
     वो आपकी मां ही है जिसने नौ माह तक अपने खून के एक एक कतरे को अपने शरीर से अलग करके आपका शरीर बनाया है और स्वयं गीले मे सोकर आपको सूखे में सुलाया है, इन्ही मां-बाप ने अपना खून पसीना एक करके आपको पढ़ाया-लिखाया, पालन-पोषण किया और आपकी छोटी से छोटी एवं बड़ी से बड़ी सभी जरूरतों को अपनी खुशियों, अरमानों का गला घोंट कर पूरा किया है। कुछ मां-बाप तो अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के खातिर अपने भोजन खर्च से कटौती कर करके उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को विदेश भेजते रहे। उन्हंे नही मालूम था कि बच्चे अच्छा कैरियर हासिल करने के बाद उनके पास तक नही आना चाहंेगे। वे मां-बाप तो अपना यह दर्द किसी को बता भी नही पाते। यह आपके पिता ही है जिन्हांेने अपनी पैसा-पैसा करके जोड़ी जमा पूंजी और भविष्य निधि आपके मात्र एक बार कहने पर आप पर खर्च कर दी। और आज स्वयं पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो गये। तिनका-तिनका जोड़कर आपके लिए आशियाना बनाया और आज आप नये आशियाने के लिऐ उन पर भावनाओं से लबालेज उनके आशियाने को बेच देने का दवाब बना रहे है, उनके तैयार नही होने पर उन्हे अकेला छोड़कर अपनी इच्छा की जगह जाकर उन्हे दण्ड दे रहे है। आपने कभी सोचा है कि मां-बाप ने यह सब क्यों किया।
    आपको मालूम होना चाहिए कि वे केवल इसी झूठी आशा के सहारेे यह सब करते रहे कि आप बड़े हांेगे कामयाब होगें और उन्हें सुख देंगे और आपकी कामयाबी पर वो इठलाते फिरेंगे। मां-बाप जो मुकाम स्वयं हासिल नही कर पाये उन्हें आपके माध्यम से पूरा करना चाहते है लेकिन बच्चे उनका यह सपना चूर-चूर कर देते हैं।
    कुछ परिवारों में बुजुर्गों को ना तो देवता समझा जाता है और ना ही इन्सानों जैसा व्यवहार किया जाता है बस बुजुर्ग उपेक्षित, बेसहारा और एकान्तवास में रहकर ईश्वर से अपने बूलावे का इन्तजार मात्र करते रहते हैं।
     आप सोच रहे होगे कि हम तो ऐसा नही करते लेकिन मैं आपको बताना चाहुंगा कि अनजाने में आपसे ऐसा हो जाता है जिससे मां-बाप का दिल दुख जाता है। नीचे कुछ पंक्तियों मे ऐसी ही बातें मैं आपके सामने रख रहा हूॅ।
    आज हम अपने आसपास किसी ना किसी बुजुर्ग महिला या पुरूष पर अत्याचार होते देखकर, “उनका निजी मामला है “ ऐसा कहकर क्या अपनी मौन स्वीकृति नही दे रहे है ? आज कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी है यह अच्छी बात है लेकिन इसका तात्पर्य यह नही है कि बुजुर्ग मां-बाप आपके मात्र चौकीदार और आया बनकर रह जायें। बुजुर्ग महिला अपने पोते-पोतियों की दिनभर सेवा करे, शाम को बेटे-बहू के ऑफिस से आने पर उनकी सेवा करे। क्या इसी दिन के लिए पढ़ी-लिखी कामकाजी लड़की को वह अपनी बहू बनाती है। लेकिन क्या करे मां का बड़ा दिल वाला तमगा जो उसने लगा रखा है सभी दर्द को हॅसते-हॅसते सह लेती है। कभी उसके दिल के कोने में झांक कर देखों छिपा हुआ दर्द नजर आ जायेगा। यदि आप अपना कर्ज चुकाना चाहते है तो दिल के उस कोने का दर्द अपने प्यार से मिटा दो।
    आज अधिकांष परिवारों में युवा अपने कार्यों में वयस्त रह कर समय का एक कृत्रिम अभाव बना लेते है तथा घर के कार्य जैसे - बच्चों को स्कूल छोड़ना-लाना, टेलिफोन, बिजली, पानी के बिल जमा करवाना, घर का सामान लाना, खराब पड़े उपकरणों को ठीक करवाना, समारोह आदि में जाना, अपने बुजुर्ग माता-पिता से ही करवाते है, बुजुर्ग महिला पर तो इसके अलावा रसोई व घर की साफ सफाई का कार्य अतिरिक्त होता है जो उसे इच्छा व शारीरिक क्षमता ना होते हुये भी करना पड़ता है।
        यदि आपके परिवार में ऊपर लिखी बातों में से कोई बात मेल नही कर रही है तो आप धन्यवाद के पात्र है कि आपका परिवार एक सुसंस्कारित व आदर्श परिवार की श्रेणी में आता है। आपके घर में साक्षात ईश्वर निवास कर रहे हैं एवं मेरा आपको शत्-शत् नमन है।
    युवा पीढ़ी को चाहिए कि वो समय रहते हुये बुजुर्गों कि अहमियत को समझ जायें। क्योंकि एकल परिवार में बच्चे को लाड-प्यार तो आप बहुत अधिक करते हैं, किन्तु दादा-दादी से प्राप्त आशीर्वाद, संस्कार, स्पर्श सुख, अपनापन, व्यवहारिकता उसे नहीं मिल पाती हैं एवं वे दादी के छोटे-छोटे किन्तु बेहद कारगर नुस्खों से वंचित रह जाते है। आपके बच्चों में संस्कार और व्यवहारिकता दादा-दादी से ही प्राप्त होगी जिससे वे शारीरिक और मानसिक रूप से अधिक सक्षम होकर जीवन में चुनौतियों का सही ढंग से मुकाबला करने में सक्षम बनते हैं। संयुक्त परिवार और एकल परिवार के बच्चों में अन्तर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।   
युवा पीढ़ी निम्न बातों को ध्यान में रखकर अपने बुजुर्गों को और अघिक सम्मान दे सकती है।
बुजुर्गों को प्रतिदिन थोड़ा समय अवश्य दें यदि हो सके तो शाम का भोजन उनके साथ करें।
अवकाश के दिन उनसे अपने बचपन की बातें पूछे, पुराने फोटोग्राफ दिखायें और उन्हे अनुभव बताने का मौका दें।
छोटी-छोटी बातों पर भी उनसे राय जरूर लें । यदि आप सहमत ना हो तो अपनी राय उन्हे समझायें वे आपकी राय को अपनी राय बना लेगें।
अपने बुजुर्गोंं के जन्मदिन पर उनके रोज मर्रा की छोटी-छोटी वस्तुएॅ उन्हें भेंट करें।
मां-बाप आपसे बहुमूल्य तोहफे नही चाहिए। वे मात्र आपमें  उनके सिखाये संस्कारों को फलिभूत होते देखने की आशा करते हैंें
     आपको ध्यान रखना चाहिए समय बहुत बलवान होता है जैसा बर्ताव आप बुढापे में स्वयं के साथ चाहते है वैसा ही आज उनके साथ करें क्योंकि आप जो बो रहे है वो ही कल आपको काटना है। बुजुर्गों के बरगद रूपी अनुभवों की छांया सदैव आपको परेशानियों, कटुअनुभवों वाली तेज धूप से बचा कर शांन्त ओर शीतल मन से जीवन जीने का आनन्द देती है।
    अब मैं मेरे द्वारा लिखी जाने वाली किसी भी गलती या गुस्ताखी के लिये बुजुर्गों से क्षमा मांगते हुये अपनी लेखनी के माध्यम से बुजुर्गों से कुछ कहना चाहूॅगा।
    बुजुर्गों और यूवा पीढ़ी के सोच में अन्तर तथा युवा पीढ़ी के पश्चिमी संस्कृति की ओर झुकाव तथा बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण टकराव पैदा हो जाता है। मेरा कहना है कि बुजुर्ग ऐसी विपरीत परिस्थितियों में झल्लायें नही और धैर्य पूर्वक समस्याओं का सामना करें।
यदि युवा पीढ़ी नही चाहती तो नसीहत ना दें। उन्हे अपने हाल पर छोड़ देें तथा स्वयं अपनी धर्मपत्नी के साथ पसन्द के कार्य जैसे- पूजा-पाठ, समाजसेवा, गार्डनिंग, लेखन, चित्रकारी, संगीत आदि में वयस्त हो जायें।
अपने बच्चों से ऐसे प्रश्न पूछने से बचें जिनका उत्तर वे आपको नही देना चाहते।
परिवार में बिना मांगे कभी अपनी राय ना दें । आप तो अपने अनुभवों से बच्चों की राह आसान बनाना चाहते हैं लेकिन बच्चे इसे अपने उपर आपके विचार थोपना समझते हैं।
सभी परिवार के सदस्यों के साथ समान व्यवहार रखें व अपनी बातों में पारदर्शिता रखें।
परिवार के सभी सदस्यों पर अपनी पैनी निगाह रखें किन्तु बच्चों को ऐसा प्रतीत ना होने दे कि वे पिंजरे में कैद है केवल आवश्यकता से अधिक स्वछन्दता दिखने पर ही अंकुश लगाये।
अपनी छवी ऐसी बनाये कि आपके निर्णयों पर परिवार में सर्व सम्मति बन सके।
 आप अपने पूर्व में रहे कार्यक्षेत्र के अनुसार समाज में भागीदारी निभाकर सम्मान पा सकते है।
    अन्त में लिखना चाहूॅगा कि यह शास्वत् सत्य है कि जिस घर में माता-पिता व अन्य बुजुर्गों का सम्मान नही होता वह घर कभी पनपता नही है और वहां कभी बरकत नही हो सकती, आज समाज चुप जरूर है परन्तु उसकी निगाहें बहुत बड़ी है। आपका सम्मान व प्रतिष्ठा घर के बुजुर्गों की स्थिति पर ही निर्भर करती है यदि आप माता-पिता का दिल नही दुखा रहे हैं तो घर में मन्दिर जैसा आनन्द महसूस करेंगे। आज आप खुषनसीब हैं, आप सच में धनवान हैं। कि आपके घर में बुजुर्ग हैं जिस दिन उन्हें ईश्वर ने बुला लिया आप कंगाल हो जायेंगे। आपके सिर पर से छाया हट जायेगी आपको चिलचिलाती धूप सहनी ही पड़ेगी। यह मेरा निजी अनुभव भी कहता है अतः पुनः युवा पीढ़ी से अपील है कि अपने जोश को बुजुर्गों के अनुभव से जोड़कर जीवन का सही मायने में लुफ्त उठायें वरना यह कहावत चरितार्थ हो जायेगी ’’अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चूग गयी खेत’’ और आपके हाथ खाली रह जायेंगे।

1 comment: