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Wednesday, September 25, 2013

अहसास

सभी आदरणीय साहित्यकारों और सृजनकर्ताओं को मेरा प्रणाम,

एक माह तक भारतीय रेल सिगनल इंजीनियरी और दूरसंचार संस्थान , सिकन्दराबाद,  आंध्र प्रदेश  में नवीन तकनीकी ज्ञान अर्जन करने के कारण आप सभी से एवं ब्लॉग से दूरी रहने  की आप सभी से क्षमा मांगते हुए अब पुनः आपके ब्लॉग पर जाने एवं आपकी प्यारी प्यारी रचनाओं को पढ़ने की इजाजत चाहूँगा ।

अहसास

      ब्लॉग की दुनिया से दूर हो जाने का,
                एक अहसास अलग सा होता है ।
      कुछ अनकहा सा धुंधला धुंधला,
              चाहकर भी, कुछ साझा ना कर पाने का,
      एक अहसास अलग सा होता है ।

       एक अनचाही दूरी , एक अलग सी खामोशी ,
            निरंतर जन्म लेती भावनाएं, फिर भी रहता एक बिखराव ।
      समय से कुछ कदम पीछे रह जाने का,
              पास होकर भी पास नही होने का ,
      एक अहसास अलग सा होता है ।

      मन को बस पढ़ाई मे लगाने का,
              कलम की कुछ गति मंद हो जाने का ।
      बोल मुँह तक आकर रूक जाने का,
              कुछ गैरों से मिल उन्हें अपना बना लेने का,
      एक अहसास अलग सा होता है ।

      किन्तु पल पल आकर साथ का ,
             अहसास कराती आपकी याद।
      आप ओर आपकी प्यारी न्यारी कलम,
             आपकी रचना के उदगारों में खो जाने का ,
      एक अहसास अलग सा होता है ।

      कलम की खुशियां लौट आई,
           साथ कुछ नये मित्र ले आई ।
      माह पूर्व तक जो अन्जाने थे,
           आज अपनो में शामिल हैं।
      सच, नव साथियों से बिछुड़ने का भी,
           एक अहसास अलग सा होता है ।


दूरियां


   आपसे दूरी, नेट से दूरी, ब्लॉग से दूरी ,
               एक अलग अहसास,
   साँझ को घर लौटने जैसा ।
               कुछ थके थके, 
   सब कुछ हल्का हल्का, कुछ बदला बदला।
               पूरे माह वही सतत दिनचर्या, 
   प्रातः उठना, मार्निंग वॉक ,
               इडली डोसा उत्पम नाश्ता ,
   निरंतर क्लास , बस पढ़ाई ।
              कुछ नया सीखने की ललक।
   परीक्षा का खौफ,
         सर्वाधिक अंक पाने की मानसिकता ।
   हर प्रांत हर भाषा का संगम,
       अनेकता में एकता का जीवंत अहसास।

  लेखनी फिर भी कुछ पल चुराती,
             लेकिन ब्लॉग तक नही पहूँचा पाती,
   बस डायरी तक ही सिमट जाती ।
             या क्लास में साथियों को सुना,
   उनके चेहरे पर मुस्कान लाती।
            समय फिर आ गया, वहीं लौटने का ।
   अपने प्यारे प्यारे साथियों के पास,
            लेकिन नये अहसास के साथ।

                   डी पी माथुर


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